पिछले दिनों शिमला के संजौली में उपजे मस्जिद विवाद से जहां हिंदू संगठन एक्टिव हुए हैं, वहीं लोगों में भी जागरुकता देखी जा रही है। इसी कड़ी में जिला मुख्यालय हमीरपुर स्थित एक शॉपिंग मॉल के एक लोर पर पिछले दो दिन से ताले लटक गए हैं, जबकि हर माह इसका करीब डेढ़ लाख रुपए किराया आ रहा था। चौंकाने वाली बात यह है कि इस मॉल का जितना खर्च था, उतनी इन्कम नहीं थी।
यह पिछले करीब तीन साल से चल रहा था। यहां बिकने वाले सामान की कीमत 20 रुपए से शुरू हो जाती थी। जब यह खुला, तो इसमें काम करने वाले समुदाय विशेष के लोगों की संख्या नाममात्र थी, लेकिन धीरे-धीरे काफी संख्या में युवा यहां पहुंच गए थे। खुफिया एजेंसियों के निशाने पर भी यह शॉपिंग मॉल था। जानकारी है कि कई बार एजेंसियों ने यहां की कथित संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट अपनी हायर अथॉरिटी को भेजी थी। हमीरपुर के स्थानीय दुकानदार भी इस मॉल से काफी परेशान थे, क्योंकि यहां कपड़ों से लेकर डेली यूज का हर सामान उस रेट पर भी बेचा जा रहा था, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, जबकि हर महीने लगभग डेढ़ लाख रुपए किराए के अलावा वहां काम करने वाले स्टाफ का खर्च लाखों में था।
सबके दिमाग में बार-बार घूमकर यही सवाल आता था कि आखिर इतना खर्च कौन उठा रहा है। इसे चलाने के लिए पैसा कहां से आ रहा है। जानकारी है कि कई जगहों पर समुदाय विशेष के इन लोगों ने दोगुने से तीगुने रेट पर दुकानें ले रखी हैं और वहां अपना छोटा-मोटा कारोबार कर रहे हैं, जिसमें उतनी कमाई नहीं है, जिससे लंबे समय तक इसे चलाया जा सके। बावजूद इसके कई वर्षों से वे काम चला रहे हैं। अब इनको फंडिंग कौन और कहां से की जा रही है, यह बहुत बड़ा सवाल बना हुआ है।
जानकारी के मुताबिक जिला मुख्यालय से सटे पक्का भरो में भी एक ऐसी ही दुकान चलाई जा रही है। लोगों की मानें, तो ये दुकानें तीन गुना रेट पर किराए पर ले रखी हैं। काफी समय से कारोबार चला हुआ है। किराए का इतना पैसा आखिर दुकान चलाने वाला कहां से निकाल रहा है, यह बड़ा सवाल है।