हिमाचल प्रदेश सचिवालय के कर्मचारी तो सरकार की आंखों में आंखें डाल कर बात करने लग गए है। सचिवालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा तो अब प्रदेश के कर्मचारियों के नेता बन गए है। कर्मचारियों के दो दिन के ट्रेलर ने मंत्रियों व अफसरशाही की फिजूलखर्ची की फाइलों के धागे खोल दिए। सचिवालय की सभी फाइलें कर्मचारियों के हाथों से होती हुई अधिकारियों के पास पहुंचती है। इसलिए इनके पास सभी पूरा कच्चा चिट्ठा था। जब मंच से कर्मचारी नेताओं ने परत दर परत खोलनी शुरू की तो अफसर भी एक पल के लिए यह सोचने को मजबूर हो गए होंगे, काश इन्हें डी.ए. व एरियर का भुगतान कर दिया होता।
कर्मचारी नेताओं ने ही नहीं नेत्रियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जो भी नेता भाषण दे रहे थे वह नया खुलासा करके जा रहा था। एक पल तो ऐसा लगा कि जोश में नेता इनके निजी जीवन के खुलासे न करने लग जाए। जिस तरह से सचिवालय कर्मचारियों का अभी तक शो रहा है, उससे तो ऐसा लग रहा है कि इसकी तैयारी कई दिन पूर्व ही हो गई थी। हैरानी की बात है कि सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगी। ऊपर से सरकार के मंत्री ब्यान ने भी आग में घी डालने का काम किया।
प्रदेश में 80 के दशक को कर्मचारी राजनीति का स्वर्णिम युग माना जाता है जब कर्मचारी सरकार को आंखे दिखाने से भी घबराते नहीं थे। वर्ष 1990 में शांता सरकार के समय में नो वर्क नो पे के खिलाफ कर्मचारियों ने बहुत बड़ा आंदोलन किया था। करीब 8 से 10 कर्मचारी नेताओं की नौकरी भी चली गई। इसके बाद कोई भी कर्मचारी संगठन सरकार को आंख दिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। उसके बाद प्रदेश में जयराम सरकार में ओ.पी.एस. की बहाली को लेकर प्रदीप ठाकुर की अगुवाई में एन.पी.एस. कर्मचारियों ने बहुत बड़ा आंदोलन किया। यह मुद्दा भाजपा की हार का बड़ा कारण बना । वर्तमान सरकार में जिला परिषद काडर महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर की अगुवाई में जिला परिषद कर्मचारियों ने करीब 20 दिनों तक आंदोलन किया लेकिन कुछ कर्मचारियों के पीछे हटने से यह सिरे नहीं चढ़़ा।
प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के कमजोर पड़ने से कर्मचारियों की विभागीय संगठन ज्यादा मजबूत हो गए है क्योंकि महासंघ के नेता सरकार से मान्यता के चक्र में कर्मचारियों की परेशानियों को भूल गए हैं। प्रदेश में रही सरकारों ने भी महासंघ को कमजोर करने का ही काम किया।
अब देखो कर्मचारियों को रोज नया संगठन आंदोलन की चेतावनी दे रहा है। कर्मचारियों को डीए व एरियर पता नहीं कब मिलेगा लेकिन संजीव शर्मा के रूप में एक तेजतरार्र नेता जरूर मिल गया है।